हरेली तिहार के पहले तक किसान अपनी फसलों की बुआई और रोपाई का काम पूरा कर लेते हैं।छत्तीसगढ़ी समाज का पहला तिहार (हरेली ) सावन महीना की अमावस्या तिथि को
बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं जिस दिन हर घर विशेष व्यंजन जिला बनाया जाता है सुबह से बैल को नहला कर आकर्षक श्रृंगार किया जाता है उसकी पूजा करके आटे की लोई में नमक डालकर खिलाते हैं सुबह से ही बैगा (ओझा) नीम का पत्ता नीम (डाला) घर -घर जाकर दरवाजा में लगाते हैं फिर बैगा (ओझा) को दान पुण्य किया जाता है ,उस दिन कृषि उपकरण जैसे, नागर,रापा, कुदारी, हसिया, बसला, धमेला ,साबल, कुल्हाड़ी आदि की पूजा की जाती है पूजा में नारियल पान सुपारी ,फूल चढ़ाकर ,आटा के घोल से हाथा देकर बंधन लगाते हैं ,प्रसाद के रूप में चीला, गलगुला चढ़ाया जाता है ,उसी दिन के प्रसाद को लेकर पिता या भाई के द्वारा बेटी को पहला तीज मायके लिवाने की परंपरा है। हरेली के दिन पुरुषों के द्वारा गेड़ी (बांस से निर्मित) बनाकर उस पर चढ़ा जाता है गांव-गांव में इसका आयोजन भी किया जाता है ।
कार्यक्रम में शामिल= देवकी साहू ,हेमा साहू, नीतू साहू ,जमुना देवी, बेबी, पुष्पा , मैना देवी, सावित्री, अनीता, रानी, सरस्वती साहू, ज्योति ललिता जुगबती, रूपा