सरायकेला खरसावां जिला के चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के विभिन्न गांव में सावन संक्रांति से मां मनसा देवी की पूजा का दौर चल रहा है। बुधवार की रात चांडिल प्रखंड के करनीडीह गांव में वैदिक व पारंपरिक रूप से मां मनसा देवी का पूजा अर्चना की गई। इस दौरान सैकड़ो की संख्या में पुरूष व महिला श्रद्धालुओं ने देवी की पूजा अर्चना कर घर में सुख शांति का प्रार्थना की। गुरुवार की प्रातः बतख, पांठा का बलि प्रथा का , अनुपालन किया गया। पूजा अर्चना के दौरान पुजारी कृष्णा कुम्हार ने
बताया गया कि पिछले तीस सालों से देवी मां मनसा की पूजा करते आ रहे है श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरा होते आ रहा है तभी आज बिहार, बंगाल, उड़ीसा से श्रद्धालु पहोंचते है। बताया कि तीस साल पूजा अर्चना में लेकिन दस सालो से श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ गया है।
सभी श्रद्धालु निर्जलता उपवास कर मन से करती है पूजा अर्चना
कई श्रद्धालुओं ने ने बताया कि माँ से मांगी हुई हर मनोकामना पूरा हो जाता है जिससे सभी माँ के पूजा अर्चना के लिये निर्जलता उपवास कर एक दिन और रात रहती है कई श्रद्धालु की मनोकामना होने पर तलाब से लेकर मंदिर तक करीब एक से डेढ़ किलोमीटर तक दंडी देकर मा की जाप करते हुऐ पोहचता है।
आपको बताते की भारत विविध रूपों व धर्मों का देश है और पूरे विश्व में आस्था की मिसाल है। पूरे दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जहां गौमाता, नदियों को मां की संज्ञा दी गई है, यहां पेड़ पौधों को देव देवी के रूप मानकर पूजा जाता है, सर्पों की देवी शिव जी की मानस कन्या मां मनसा देवी आदि 33 कोटी (प्रकार) के देवी देवताओं आस्था, श्रद्धा, भक्ति के साथ पूजा अर्चना की जाती है। जिसमें सर्पों की देवी मां मनसा देवी की पूजा अर्चना झारखंड व पश्चिम बंगाल में बंगला पंचांग के सावन संक्रांति से आश्विन संक्रांति तक दो महीने मंदिर व घर में वैदिक व पारंपरिक तरीके से की जाती है। दो महीने तक ग्रामीण क्षेत्रों में मां मनसा देवी की पूजा की धूम रहती है। पूजा में आश्चर्यजनक तथ्य देखा जाता है। पूजा के पूर्व श्रद्धालुओं द्वारा तालाब, नदी आदि से घट लाकर मंदिर में स्थापित की जाती है। इस दौरान मां मनसा देवी के भक्तों द्वारा कही कही जगह पर जीवित जहरीले सांपों से एक विशेष प्रकार की खेल ‘झांपान’ व कोर्रा चाबुक ,आदि खेल दिखाया जाता है।