जमशेदपुर: झारखंड जनतांत्रिक महासभा के कृष्णा लोहार और दीपक रंजीत ने सहायक प्रोफेसर नियुक्ति नियमावली पर सवाल उठाते हुए एक प्रेस रिलीज जारी किया

Spread the love

जमशेदपुर: झारखंड जनतांत्रिक महासभा के कृष्णा लोहार और दीपक रंजीत ने सहायक प्रोफेसर नियुक्ति नियमावली पर सवाल उठाते हुए एक प्रेस रिलीज जारी किया.

इन्होंने बताया कि पिछले दिनों अखबार के माध्यम से पता चला कि राज्य के विश्वविद्यालयों में सहायक प्रोफेसर (व्याख्याता) की नियुक्ति में शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए दिए गए अंकों में बदलाव किया गया है. इसका झारखंड जनतांत्रिक महासभा विरोध करती है.


ज्ञात हो कि उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग ने नियमों का मसौदा तैयार किया है. इसके तहत देश के शीर्ष 100 शिक्षण संस्थानों या एनएसी से ए+/ए++ ग्रेडिंग हासिल करने वाले विश्वविद्यालय से पीएचडी करने वाले उम्मीदवारों को पीएचडी के लिए 30 अंक दिए जाएंगे. खास बात यह है कि झारखंड में टॉप 100 में एक भी यूनिवर्सिटी नहीं है.
इतना ही नहीं, देश के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों या एनएसी से ए/बी++ से पीएचडी करने वाले उम्मीदवारों को पीएचडी के लिए 15 अंक दिए जाएंगे.

झारखंड जनतांत्रिक महासभा ने सवाल उठाया कि जब झारखंड में एक भी ए+/ए++ ग्रेड वाले झारखंड में टॉप 100 में एक भी यूनिवर्सिटी नहीं है. तो फिर झारखंड ने यह नियम किसके लिए परिवर्तन किया है. झारखंड के जो छात्र झारखंड के यूनिवर्सिटियों के पीएचडी कर रहे है उनका क्या होगा?

जबकि राज्य में इस श्रेणी का कोई शिक्षण संस्थान नहीं है. तब इस तरह का नियमावली बनाकर राज्य सरकार किसे फायदा दिलाना चाहती है?

दूसरी ओर, पीएचडी उम्मीदवारों को राज्य के विश्वविद्यालयों से केवल पांच अंक मिलेंगे, जिन्हें एनएसी द्वारा ग्रेड नहीं किया गया है. उल्लेखनीय है कि पहले पीएचडी करने वाले सभी उम्मीदवारों को समान रूप से 30 अंक दिए जाते थे.

महासभा ने बताया कि व्याख्याता के पद के लिए साक्षात्कार के अंक कम कर दिए गए हैं. अब व्याख्याता के लिए केवल 10 अंकों का साक्षात्कार होगा. जो कि एक सकारात्मक कदम ही है. यदि साक्षात्कार पूर्ण रुप से हटा ही दिया जाता तो और अच्छा होता.

महासभा ने आगे बताया कि हमलोगों का सिर्फ और सिर्फ यही कहना है कि झारखंड में शैक्षणिक माहौल बनाया जाए. झारखंड में स्कूल कॉलेज और यूनिवर्सिटियों के स्तर को ऊंचा किया जाए.  

यूजीसी 2018 का जो नाम से उसमें पूरे देश में किसी भी यूनिवर्सिटी को ग्रेड के आधार पर पीएचडी में अंक बांटने का प्रावधान या नियम नहीं है तो उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा विभाग इस तरह का नियमावली तैयार कर अपने ही राज्य के विश्वविद्यालयों को कमजोर करना चाहती है? क्यों?

• सवाल यह है कि एनएसी का ग्रेड हरबार बदलता रहता है. कभी बी तो कभी बी+ कभी ए तो कभी ए+ यैसे में छात्र असमंजस में रहेगा कि जिस विश्वविद्यालय का ग्रेड ए+ देखकर लिया था पीएचडी सब्मिट के समय उस विश्वविद्यालय का ग्रेड बी है. इसलिए इस तरह का नियमावली निराधार है.

• यूजीसी 2018 के नॉम्स को हूबहू पालन किया जाए.

• या एक षड्यंत्र है जिसका खुलासा होना चाहिए विभागीय उच्च पदाधिकारी या फिर विभागीय सचिव कहां से संचालित हो रही है?

• किसके इशारे पर जिसका जरूरत नहीं है वह नियम बनाया जा रहा है?

• कौन लोग हैं जो झारखंड में उच्च शिक्षा का माहौल को खराब करना चाहती है?

• सहायक प्रोफेसर नियुक्ति परिवर्तित नियमावली देखने से यही लगता है कि झारखंड सरकार चाहती है कि झारखंड के छात्र झारखंड के यूनिवर्सिटियों से पीएचडी न करे.

• माननीय मुख्यमंत्री महोदय को हस्तक्षेप कर तत्काल इस तरह के नियमावली संशोधन को वापस लिया जाना चाहिए.

• महासभा ने एनएसी द्वारा विश्वविद्यालयों को दिये जाने वाले ग्रेड पर भी सवाल उठाते हुए कहाँ की यह लोग सिर्फ बिल्डिंग देखकर ग्रेडिंग करते है.

महासभा ने झारखंड सरकार से मांग किया कि इस नियमावली को जल्द से जल्द बदला जाए. यदि ऐसा नहीं होता है तो झारखंड के आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार के विद्यार्थी प्रोफेसर नहीं बन पाएंगे.

झारखंड जनतांत्रिक महासभा कभी बर्दाश्त नहीं करेगी इसके लिए झारखंड जनतांत्रिक महासभा सड़क से लेकर सदन तक विरोध करेगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *