इस शोभा यात्रा में महिलाएं मां की नौ दिनों तक जो पूजा होती है। पूजा ह्यूमन के बाद गेहूं के अंकुर और मां की ज्योत को अपने सर पर लेकर झूमते हुए। नदी तट पर पहुंचती है ।इस दौरान मां की गीतों का पूरे रास्ते पर भजन गाते हुए उसे विसर्जित करती है। छत्तीसगढ़ी समाज में इसे जावरा भी कहा जाता है।