प्रकृति की गोद में बसे चांडिल डैम में मोती की खेती कर रहे किसानों ने पेश किया मिशाल

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पहले ही प्रयास में मिली सफलता, डैम में मोतियों का उत्पादन शुरू, बाजार की तलाशपर्यटकों को लुभा रहा यहां तैयार मोती, किसानों के चेहरे पर रौनक, सरकार से बढ़ी उम्मीदसरायकेला- खारसावां जिले के चांडिल जलाशय में मोती की खेती कर रहे किसानों ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. यहां के किसानों ने पहले ही प्रयास में मोती की खेती कर उसे तैयार कर सरकार और जिला प्रशासन के समक्ष एक नई संभावना पेश कर दी है. जरूरत है इन्हें ब्रैंडिंग और मार्केटिंग की. जानिए मोती की खेती से जुड़े किसान बुद्धेश्वर माझी को कैसे मिली मोती की खेती करने की प्रेरणा और कैसे उन्हें सफलता मिली. आगे सरकार और जिला प्रशासन से उनकी क्या मांग है.बता दें कि स्वर्णरेखा बहुद्देश्यीय परियोजना की ओर से करीब 22000 हेक्टेयर में चांडिल जलाशय का निर्माण किया गया है. इसमें 84 मौजा के 116 गावों के ग्रामीण विस्थापित हुए हैं. इन्हीं विस्थापितों ने मिलकर मत्स्यजीवी स्वावलंबन समिति बनाकर पहले केज कल्चर से मछली उत्पादन शुरू किया उसके बाद मोती की खेती शुरू की, जिसमें पहले ही प्रयास में उन्हें सफलता मिली. अब इनकी समस्या तैयार मोतियों के मार्केटिंग और ब्रांडिंग की है. मत्स्यजीवी सहकारी समिति से जुड़े विस्थापित किसान जगदीश सिंह सरदार का कहना है कि पहले ही प्रयास से हमें सफलता मिली है. अभी कम मात्रा में मोतियों का उत्पादन किया गया है. सरकार और प्रशासन की ओर से यदि उन्हें सुविधा मिले तो आने वाले दिनों में चांडिल जलाशय मोती उत्पादन का बड़ा हब बन सकता है जो यहां के विस्थापित किसानों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा.बता दे कि चांडिल जलाशय में साल- दर- साल सैलानियों की संख्या में इजाफा हो रहा है. यहां नौका विहार और केज कल्चर से तैयार हो रहे मछली देखने सैलानी जुटते हैं. मछली उत्पादन के बाद मोतियों के उत्पादन से यहां के विस्थापित किसानों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं. मार्केटिंग और ब्रांडिंग नहीं होने की वजह से जलाशय में तैयार मोतियों को किसान यहां पहुंचने वाले सैलानियों को खुद बेच रहे हैं. सैलानी भी यहां तैयार मोतियों को देख खुश नजर आ रहे हैं. मगर किसानों के लिए यह नाकाफी है. जरूरत है इन्हें सरकारी मदद और इनके द्वारा तैयार किए गए मोतियों को बाजार की. यदि समय रहते मोती उत्पादन से जुड़े किसानों को बाजार मुहैया करा दिया गया, तो निश्चित तौर पर चांडिल डैम से विस्थापित किसानों के दिन फिरने लगेंगे और बड़ी संख्या में बेरोजगारी और पलायन की समस्या दूर हो सकेगी.

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