जमशेदपुर: शब ए आशूर को साकची में मजलिस के बाद मातमी जुलूस निकाला गया। इस मातमी जुलूस में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ताबूत और जुल्जनाह बरामद हुए। अजादारों ने ताबूत और जुल्जनाह की जियारत की। नौहाखानी और मातम हुआ। जुलूस साकची में हुसैनी मिशन के इमामबाड़े से निकल कर साकची गोलचक्कर तक गया। यहां जंजीर का मातम भी हुआ। यह जुलूस साकची गोलचक्कर से वापस हुसैनी मिशन के इमामबाड़े में आकर ख़त्म हुआ। इससे पहले इमामबाड़े में मजलिस हुई। मजलिस शिया जामा मस्जिद के पेश इमाम मौलाना जकी हैदर करारवी ने पढ़ी। उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मसाएब पढ़े। मौलाना ने पढ़ा कि जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के छह महीने के बच्चे हज़रत अली असगर अलैहिस्सलाम शहीद कर दिए गए तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मक़तल में आए। इमाम ने तन्हा तारीखी जंग की। इमाम जंग करते जाते थे और दुश्मनों से रहते जाते थे कि तुमने मेरे कासिम को मारा है तुमने मेरे भाई अब्बास को मारा है। कि मेरे बेटे अकबर को मारा है। इमाम हुसैन के हमले से यजीदी फौज भागने लगी। अल अमान अल अमान की सदा बुलंद होने लगी। यजीदी फौज की तरफ से आवाज आई। बेड़ा बचाया आपने तूफान से नूह का, अब रहम वास्ता अली अकबर की रूह का। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अली अकबर का नाम सुनते ही तलवार म्यान में रख ली। इसके बाद भागी हुई फौजें सिमटीं। किसी ने तीर किसी ने तलवार से वार किया। जिसके पास कुछ नहीं था, उसने पत्थर चलाया। रसूल के नवासे घोड़े पर संभल न सके। इमाम हुसैन जमीन पर तशरीफ लाए। शिम्र कुंद खंजर लेकर आगे बढ़ा और इमाम के सर को तन से जुदा कर दिया।