कोल्हान में पर्व-त्योहारों के बीत जाने के बाद अब नववर्ष के स्वागत का जश्न शुरू हो गया है । पर्यटन स्थलों पर दूर-दराज से सैलानियों का पहुंचना शुरू हो चुका है। चांडिल के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल चांडिल डैम, दलमा अभयारण्य, जयदा बुढ़ाबाबा मंदिर सहित अन्य पर्यटन स्थल नवंबर महीने के अंतिम सप्ताह से सैलानियों से गुलजार होने लगते हैं।वाइट: पर्यटक इन स्थलों में आकर पश्चिम बंगाल,उड़ीसा, बिहार, आदि राज्यों से सैलानी अपने को प्रकृति के निकट महसूस करते हैं. हर साल अंतिम वर्ष की विदाई और नववर्ष के स्वागत में दूर-दूर से सैलानी इन स्थलों में पहुंचते हैं और प्रकृति के अनुपम उपहार और सौंदर्य को निहारते हैं. वैसे तो सालों भर इन पर्यटन और धार्मिक स्थलों में लोगों का आवगमन होता रहता है, पर नवंबर से फरवरी महीने तक हर दिन इन क्षेत्रों में सैलानियों की भारी भीड़ जुटती है।
प्रकृति की अनमोल सुंदरता वाले दर्शनीय स्थल, पहाड़ी वादियों के बीच से बहती नदियों को निहारना काफी मनमोहक लगता है।चांडिल डेम जलाशय में पर्यटकों मांगे है,पंछी,जानवर ,ओर जलाशय में बत्तक आदि देखने मिलना चाहिए ।पहले के दौर में यह सभी जीव जंतु देखने को मिलता था ,बच्चे की लिए पंछी देखने की इच्छुक रहता है।*धरातल पर नहीं उतर रही योजनाएं*पालना डैम.इन पर्यटक स्थलों के समग्र विकास को लेकर विभाग और स्थानीय प्रशासन द्वारा तैयार की गई योजनाएं अब तक धरातल पर समग्र रूप से उतर नहीं पायी हैं. प्रकृति के अनुपम उपहार वाले पर्यटक स्थनों के विकास को लेकर अब तक कुछ खास नहीं किया जा सका है. चांडिल क्षेत्र के पर्यटन स्थलों की चर्चा तो खूब होती है, पर धरातल पर कोई पहल होती नहीं दिखाई देती है. ऐसा महसूस होता है कि चांडिल क्षेत्र के पर्यटन स्थल प्रशासनिक उदासीनता के शिकार हो गए हैं. जरूरत है इन मनमोहक स्थलों पर सुरक्षा के व्यापक उपाय करने के साथ इनको विकसित करने की. दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को छोड़कर पर्यटन स्थलों में सैलानियों के ठहरने के लिए किसी प्रकार का कोई इंतजाम नहीं है. इतना ही नहीं, सैलानियों के खाने-पीने और अन्य सुविधाओं की भी पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं है. सड़कों की स्थिति को भी अब तक सुधारा नहीं जा सका है.*उदासीनता के कारण गुमनाम है सोना झरना**सोना झरना.नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने से सरकार दृष्टि कोण से कोशोदुर*चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के अनुपम उपहारों में से एक है घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के सुदूरवर्ती हेंसाकोचा गांव के दाराकोचा टोला स्थित सोना झरना. दाराकोचा का अनुपम सौंदर्य वाला सोना झरना गुमनामी के अंधेरे में है. सोना झरना चारों ओर हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ है. यहां करीब सौ फीट की ऊंचाई से झरने का पानी गिरता है. शोर-शराबे और प्रदूषण से दूर अनुपम सौंदर्य समेटा सोना झरना बरबस ही लोगों को अपनी और आकर्षित करती है. सोना झरना तक जाने के लिए पक्की सड़क नहीं है. सोना झरना तक जाने वाली सभी सड़कें हेंसाकोचा तक पक्की है. इसके बाद से करीब दो किलोमीटर दूर स्थित सोना झरना तक पैदल ही जाना पड़ता है. कुछ ऐसा ही हाल पालना डैम का है. कुछ वर्षों पहले तक सौलानियों से भरा रहने वाला पालना डैम अब वीरान रहता है. यहां सैलानियों के सुविधा के लिए कुछ भी नहीं है।