जल जंगल जमीन वाले झारखंड में आज भी कुछ ऐसी सदियों पुरानी परंपरा है जिसे आदिवासी समाज निभाते चला आ रहा है इस परंपरा में कुछ ऐसी तस्वीरें हैं जिसे देखकर आप भी चौंक जाएंगे ।दरअसल साल के पहले महीने में मकर संक्रांति के दूसरे दिन को आदिवासी समाज अखंड जात्रा कहते हैं और अखंड जात्रा के अहले सुबह गांव में अलग-अलग कस्बे में महिलाएं अपने बच्चे को लेकर पुरोहित के घर में आती है जहां पुरोहित जमीन पर बैठकर तांबे की सिक को लकड़ी की आग में तपाते हैं ।
महिलाएं अपने बच्चे को पुरोहित के हवाले करती है जहां पुरोहित महिलाओं से उनके गांव का पता पूछ कर अपने देवी-देवताओं को याद कर प्रणाम करते हैं और फिर बच्चे के पेट के नाभि के चारो तरफ चार बार सरसो का तेल लगाकर गर्म सिक से नाभि के चारो तरफ चार बार दागते है ।इस दौरान बच्चे चीखते हैं चिल्लाते हैं रोते हैं लेकिन मां को इस बात की खुशी रहती है कि इस परंपरा को निभाने से उनके बच्चे को पेट से संबंधित सभी बीमारी से मुक्ति मिलेगी । और इस परंपरा को गांव की बुजुर्ग महिलाएं और पुरोहित निभाते हैं उनका कहना है कि मकर पर्व में कई तरह के व्यंजन खाने के बाद पेट दर्द या जो भी शिकायत होती है चिड़ी दाग करने से वह सब ठीक हो जाता है इसमें 21 दिन के बच्चे से लेकर बड़े को भी चिड़ी दाग दिया जाता है।
बाइट छोटू सरदार पुरोहित
हालांकि समय के साथ-साथ बदलाव भी देखा जा रहा है पहले की अपेक्षा अब कम संख्या में बच्चे चिड़ी दाग के लिए आते हैं वहीं ग्रामीण महिलाएं बताती है कि उन्हें अपनी इस परंपरा पर पूरा विश्वास है ऐसा करने से उनका बच्चा स्वस्थ रहता है पेट से संबंधित कोई बीमारी नहीं होती लेकिन चिड़ी दाग के लिए कोई जोर जबरदस्ती भी नहीं है।
