मोमिन अंसार सभा झारखंड ने बाबा कॉम आसिम बिहारी रहमतुल्लाह अलैही की याद में एमएस औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में कार्यक्रम अयोजित किया

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मोमिन अंसार सभा झारखंड ने बाबा कॉम आसिम बिहारी रहमतुल्लाह अलैही की याद में एमएस औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में कार्यक्रम अयोजित किया। जिसमें जनाब खालिद इकबाल साहब ने भीमराव अम्बेडकर और आशिम बिहारी रहमतुल्लाह की जीवन पे रोशनी डाली।

वजीर क़ानून, भारत रत्न डॉ. भीम राव अम्बेडकर और बाबा-ए-कौम और अज़ीम मुजाहिद आजादी मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी (रह)

भारत के दो अज़ीम रहनुमा मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी (रह) और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की योम-ए-पैदाइश भारत में त्यौहार की शक्ल में मनाया जाता है। मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी (रह) की योम-ए-पैदाइश 15 अप्रैल 1889 और बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की
योम-ए-पैदाइश 14 अप्रैल 1891 में र्हुइ । यह दोनों रहनुमा तकरीबन हम अस्र हैं और उनकी हयात व खिदमात की बात करें तो दोनों रहनुमाओं में बड़ी हद तक यक्सानियत पाई जाती है। दोनों की जिंदगी पैदाइश से लेकर वफात तक यक्सां रही। ये और बात है कि आज बाबा साहेब के फॉलोअर्स पैरोकार काफी हैं और उनके बताए हुए रास्ते पर चल रहे हैं, जबकि बाबा-ए-कौम अली हुसैन साहब के फॉलोअर्स तो हैं

इन रहनुमाओं ने अपनी सारी जिन्दगी गरीबों, मेहनत कशों, तालीमी, मआशी, समाजी ताैर पर नजर अंदाज और कमजोर दलित बिरादरियों की हमा जहत फलाह व बहबूद की कोशिशों में गुजारी।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के हालात का जायजा लें तो वह एक मुम्ताज मुफक्किर, मुसल्लेह, कानून दां, दस्तूरे हिंद के मोअल्लिफ, भारत के पहले वजीर कानून और इल्म के हामिल थे। बाबा साहब
अम्बेडकर ऐसे दौर में पैदा हुए जब जुल्म व ज्यादती और इस्तेहसाल का दाैर राइज था और भारत का मुआशरा जात पात की तफरीक और छुआछूत पर मबनी था।

डॉक्टर अंबेडकर का ताल्लुक भी उसी अछूत बिरादरी से था जो इंसानी हुकूक से महरूम थी। उन्हें बचपन में इस छुआछूत का शिकार होना पड़ा।

डॉक्टर अंबेडकर जब स्कूल में दाखिला लिया तो दीगर जात के बच्चों के साथ उन्हें बैठने की इजाजत न थी। वह सबसे अलग जमीन पर डांट बिछा कर बैठते थे लेकिन कभी मायूस नहीं हुए और न हिम्मत हारी।

वही मुजाहिद आजादी माैलाना आसिम बिहारी (रह) का ताल्लुक मुस्लिम बिरादरी से था। वह एक मुसल्लेह व मुफक्किर कौम, दानेश्वर, समाजी व सियासी और इंसान दाेस्त शख्सियत थे। इन्होंने आवाम के लिए जो खिदमात अंजाम दीं उसकी मुस्लिम मुआशरे में कोई मिसाल नहीं मिलती। उनकी कोशिशों की
बदौलत अवाम में बेदारी पैदा र्हुइ और समाजी व सियासी शऊर पैदा ह ुआ। माैलाना आसिम बिहारी ऐसे दौर
में पैदा हुए जब गरीब, मेहनतकश तबकात समाजी, तालीमी और मआशी बदहाली के शिकार थे। गैरों की
तर्ज पर मुस्लिम मुआशरे में भी जात-पात और ऊंच-नीच का दौर दौरा था। मुसलमानों के दरमियान नाइंसाफी व इस्तेहसाल की बुरी रिवायत आम थी।

डॉक्टर अंबेडकर और मौलाना आसिम बिहारी दोनों की पैदाइश गरीब घराने में र्हुइ , लेकिन दोनों रहनुमाओं ने आला तालीम हासिल की। क्योंकि वह जानते थे कि समाज के अंदर फैली जात पात, छुआछूत और नाइंसाफी व इस्तेहसाल की इस गंदी रिवायत को अगर खत्म करना है तो आला तालीम हासिल करना होगा। समाज के अंदर फैली तमाम तरह की बुराइयों को अगर खत्म करना है तो हमें तालीम याफ्ता बनना होगा। इसलिए दोनों ने अपनी सारी उम्र दबे कुचले लोगों को इंसाफ दिलाने और गुरबती के
शिकार लोगों की मदद करने में गुजार दी।

दोनों रहनुमाओं ने हमेशा लोगों से तालीम याफ्ता बनने, मुत्तहिद होने, मेहनत करने, अपने हुकूक के लिए आवाज उठाने, समाज के अंदर फैली बुराइयों से लड़ने और उसको खत्म करने, ना इन्साफी
व इस्तेहसाल के खिलाफ आवाज बुलंद करने, भेदभाव, जात पात की रिवायत के खिलाफ लड़ने, हक़ तल्फी
करने वालों और हक तल्फी करने वाली पॉलिसियों के खिलाफ लड़ने की बात कही।

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