
पूर्वी सिंहभूम जिले के जुगसलाई तोरोप, थाड़ दिशोम क्षेत्र के पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के प्रतिनिधियों—माझी परगना महाल की अगुवाई में मंगलवार को उपायुक्त कार्यालय के समक्ष एक दिवसीय आक्रोश विरोध प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन का मुख्य उद्देश्य प्रस्तावित जमशेदपुर नगर निगम विस्तारीकरण योजना को निरस्त करना, झारखंड राज्य में पेसा कानून को अविलंब लागू करना और आदिवासियों के लिए ‘सारना धर्म कोड’ को मान्यता दिलाना था।
प्रदर्शन के उपरांत प्रतिनिधिमंडल ने उपायुक्त, पूर्वी सिंहभूम के माध्यम महामहिम राष्ट्रपति, माननीय राज्यपाल (झारखंड), केंद्रीय गृह मंत्री, मुख्यमंत्री (झारखंड सरकार) और अध्यक्ष, जनजाति आयोग (नई दिल्ली) को संबोधित ज्ञापन सौंपा।
संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन: पूर्वी सिंहभूम जिला पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आता है, जहां भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243ZC के तहत नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायत का गठन असंवैधानिक है। ऐसे में प्रस्तावित नगर निगम विस्तार योजना को तुरंत रद्द करने की मांग की गई।
पारंपरिक आदिवासी शासन व्यवस्था पर खतरा:
आदिवासी समुदायों की पारंपरिक स्वशासन प्रणाली, धार्मिक रीति-रिवाज, और जल-जंगल-जमीन पर अधिकार भारतीय संविधान की धारा 13(3)(क) और पेसा अधिनियम 1996 द्वारा संरक्षित हैं। नगर निगम विस्तार से इन व्यवस्थाओं को गहरी चोट पहुंचेगी।
CNT एक्ट और पांचवीं अनुसूची का उल्लंघन:
नगर निगम बनने से CNT एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन होगा और आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण की आशंका जताई गई। इससे उनकी संस्कृति, जीवनशैली और पहचान पर सीधा संकट उत्पन्न होगा।
आर्थिक बोझ और विस्थापन का डर:नगर निगम क्षेत्र में शामिल होने पर होल्डिंग टैक्स और अन्य राजस्व शुल्कों में बढ़ोतरी होगी, जिससे गरीब आदिवासी परिवारों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा और वे पलायन के लिए मजबूर होंगे। इससे उनकी पहचान और अस्तित्व खत्म होने का खतरा है।
झारखंड में पेसा कानून लागू किया जाए: झारखंड में अब तक पेसा कानून प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया है, जिससे बाहरी लोग पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में बसते जा रहे हैं। इससे आदिवासी समुदाय के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है और जल-जंगल-जमीन की लूट जारी है।
सारना धर्म कोड को मान्यता मिले:आदिवासी समुदाय ने मांग की कि सारना धर्म को जनगणना प्रपत्र में स्वतंत्र धर्म कोड के रूप में मान्यता दी जाए। 2011 की जनगणना में करीब 50 लाख लोगों ने सारना धर्म को अपनी पहचान के रूप में दर्ज किया था। वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि आदिवासी किसी भी संप्रदाय—हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई—से नहीं जुड़े हैं, वे प्रकृति पूजक हैं।
माझी परगना महाल के प्रतिनिधियों ने कहा कि अगर सरकार ने मांगों पर शीघ्र निर्णय नहीं लिया तो आदिवासी समाज व्यापक आंदोलन करेगा।