पहल पर भारत सरकार ने देशभर में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलने का निर्णय लिया जहां हर प्रकार के रोगों की सस्ती जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही है, इनकी कीमत अन्य दवाइयों की तुलना में आधे से भी कम हैं मगर सरकारी उदासीनता और दवा कंपनियों के भारी भरकम कमीशन के झांसे में आकर डॉक्टर मरीजों को जेनेरिक दवाइयां प्रिस्क्राइब नहीं कर रहे हैं जिससे न केवल प्रधानमंत्री के सपनों को ग्रहण लग रहा है, बल्कि जन औषधि केंद्र संचालकों का भी बुरा हाल है. जबकि एक्सपर्ट्स बताते हैं कि जेनेरिक दवाइयां भी उतने ही कारगर होते हैं जितना मेडिकल स्टोर्स में मिलने वाली महंगी दवाइयां. खुद इन दवाओं का सेवन कर रहे मरीजों ने भी माना है कि इन दवाइयां के सेवन से उन्हें काफी लाभ मिला है और पैसों की भी बचत हो रही है.ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर डॉक्टर प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र में मिलने वाले दवाइयों को खरीदने की सलाह मरीजों को क्यों नहीं दे रहे यह जानने जब हमारी टीम जमशेदपुर के मानगो में खुले जन औषधि केंद्र पहुंची तो वहां के संचालक ने इसके पीछे दवा कंपनियों द्वारा डॉक्टर और एमआर के कमिश के खेल को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने बताया कि यहां जेनेरिक दवाइयां मिलती हैं जो डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार से मान्यता प्राप्त होते हैं. ये दवाइयां भी उतने ही कारगर हैं जितनी महंगी दवाइयां कारगर होते हैं. फर्क केवल इतना होता है कि डॉक्टर मरीजों को जेनेरिक दवाइयां नहीं लिखते जिससे मरीज इन केंद्रों तक नहीं पहुंच पाते और डॉक्टरों की सलाह पर मेडिकल स्टोर से उसी दवाओं को खरीदते हैं जिसे डॉक्टर लिखते हैं. मालूम हो कि साल 2014 में प्रधानमंत्री के घोषणा के अनुसार कोल्हान में 300 से अधिक जन औषधि केंद्र खोलने का निर्णय लिया गया था, मगर हकीकत यही है कि जमशेदपुर जैसे शहर में दस से भी कम जन औषधि केंद्र खुले हैं. आलम ये है कि इसका सटीक आंकड़ा भी सरकारी सिस्टम के पास नहीं है. जो केंद्र चल रहे हैं उनके हालात भी ठीक नहीं हैं. कारण जानने जब हमारी टीम निकली तो चौंकाने वाला मामला प्रकाश में आया. जमशेदपुर सदर अस्पताल के मैनेजर निशांत कुमार को इसकी भी जानकारी नहीं है कि शहर में कितने जन औषधि केंद्र खुले हैं और वहां मरीज क्यों नहीं पहुंच रहे हैं. हालांकि उन्होंने बताया कि डॉक्टरों को जेनेरिक दवाइयां लिखने की सलाह दी जा रही है, मगर सवाल फिर वही की आखिर डॉक्टर मरीज को जेनेरिक दवाइयां क्यों नहीं लिख रहे ? इस पर निशांत कुमार ने क्या कहा आप भी जाने. ऐसे में साफ समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री के दूरदर्शी सोच को जमीन पर नहीं उतारने में न केवल सरकारी मशीनरी, बल्कि दवा माफियाओं का बड़ा सिंडिकेट कम कर रहा है जो नहीं चाहता है कि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र तक मरीज या उनके परिजन पहुंचे. जबकि इन केंद्रों में हर प्रकार की दवाइयां आधे से भी कम कीमतों पर उपलब्ध है. वह भी स्वास्थ्य मंत्रालय और डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रमाणित. ऐसे में लोगों को खुद पहल करनी होगी और प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों तक पहुंच कर दवाइयां लेनी होगी. फर्क और असर देखना होगा तब जाकर प्रधानमंत्री के सपनों को साकार किया जा सकेगा.