स्कूल-कॉलेजों में हिजाब की इजाजत नहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका खारिज,हिजाब इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं” कर्नाटक हाईकोर्ट का अहम फैसला

राष्ट्रीय कर्नाटक हिजाब मामले में आज मंगलवार को कर्नाटक हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने स्कूल कॉलेजों में हिजाब बैन के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य प्रथा का हिस्सा नहीं है, इसलिए स्कूलों में यूनिफॉर्म पहनने के लिए बाध्य करना ठीक है, जिसका स्टूडेंट्स विरोध नहीं कर सकते.

कर्नाटक हाईकोर्ट में उडुपी की छात्राओं ने स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने पर बैन लगाने के सरकार के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया था. इस पर सुनवाई के लिए 9 फरवरी को चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की बेंच का गठन किया गया था. छात्राओं ने अपनी याचिका में कहा था कि उन्हें क्लास के अंदर भी हिजाब पहनने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि यह उनकी आस्था का हिस्सा है.

वहीं, मंगलवार को कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता छात्राओं के वकील अनस तनवीर ने कहा कि वे कर्नाटक हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करेंगे
हिजाब विवाद पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि इस फैसले का सम्मान किया जाएगा.हालांकि मंगलवार को हाईकोर्ट के फैसले से पहले ही पूरे कर्नाटक में कड़ी सुरक्षा के इंतजाम कर दिए गए. बेंगलुरु समेत कई इलाक़ो में धारा-144 लागू कर दी गई. शिवामोगा में स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए. इसके अलावा इस मामले की सुनवाई कर रहे हाईकोर्ट के जजों की सुरक्षा बढ़ा दी गई.

अब जानिए क्या है हिजाब विवाद..

कर्नाटक में हिजाब को लेकर विवाद की शुरुआत 2022 की जनवरी में हुई थी. यहां उडुपी के एक सरकारी कॉलेज में 6 छात्राओं ने हिजाब पहनकर कॉलेज में एंट्री ली थी. कॉलेज प्रशासन ने छात्राओं को हिजाब पहनने के लिए मना किया, लेकिन वे फिर भी पहनकर आ गईं. कॉलेज की ओर से कड़ा विरोध जताए जाने पर इन लड़कियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कॉलेज प्रशासन के खिलाफ विरोध दर्ज करवाया. इसके बाद कर्नाटक से लेकर पूरे देश में हिजाब को लेकर विवाद शुरू हो गया. स्कूलों में हिजाब के समर्थन और विरोध में प्रदर्शन किए गए. इसके बाद यह मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. 11 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर कहा कि इस मामले पर पहले कर्नाटक हाईकोर्ट में कार्रवाई पूरी हो जाए, उसके बाद ही वह इस पर सुनवाई करेंगे। इस फ़ैसले के बाद अल्पसंख्यक समाज की ओर से प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक है। ख़ासतौर से इस विवाद पर राजनीति होना तय है। ज़ेरे बहस जारी है।

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